भौतिक विज्ञान
भौतिकी प्राकृतिक विज्ञान की वह शाखा है जिसमें द्रव्य (matter) तथा ऊर्जा ( energy) और उसकी परस्पर क्रियाओं का अध्ययन होता है। भौतिकी प्राकृतिक जगत का मूल विज्ञान है, क्योंकि विज्ञान की अन्य शाखाओं का विकास भौतिकी के ज्ञान पर बहुत हद तक निर्भर करता है ।
4. गुरुत्वाकर्षण
- न्यूटन का गुरुत्वाकर्षण का नियम (Newton's Law of Gravitaion) : किन्हीं दो पिण्डों के बीच कार्य करने वाला आकर्षण बल पिण्डों के द्रव्यमानों के गुणनफल के अनुक्रमानुपाती तथा उनके बीच के दूरी की वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
- माना दो पिण्ड जिनके द्रव्यमान m, एवं m, हैं, एक दूसरे से R दूरी पर स्थित है, तो न्यूटन के नियम के अनुसार उनके बीच लगने वाला आकर्षण - बल, F=Gm1m2/r2 होता है। जहाँ G एक नियतांक है,
- ×Nm2/Kg2 होता है।
गुरुत्व जनित त्वरण (g) वस्तु के रूप, आकार, द्रव्यमान आदि पर निर्भर नहीं करता है।
- g के मान में परिवर्तन
1. पृथ्वी की सतह से ऊपर या नीचे जाने पर g का मान घटता है।
2.'g' का मान महत्तम पृथ्वी के ध्रुव (pole) पर होता है।
3. ́g ́ का मान न्यूतम विषुवत् रेखा ( equator) पर होता है।
4. पृथ्वी के घूर्णन गति बढ़ने पर '8' का मान कम हो जाता है।
2.'g' का मान महत्तम पृथ्वी के ध्रुव (pole) पर होता है।
3. ́g ́ का मान न्यूतम विषुवत् रेखा ( equator) पर होता है।
4. पृथ्वी के घूर्णन गति बढ़ने पर '8' का मान कम हो जाता है।
5. पृथ्वी के घूर्णन गति घटने पर '8' का मान बढ़ जाता है।
नोट : यदि पृथ्वी अपनी वर्तमान कोणीय चाल से 17 गुनी अधिक चाल से घूमने लगे तो भूमध्य रेखा पर रखी वस्तु का भार शून्य हो जायेगा।
- लिफ्ट में पिण्ड का भार (Weight of a body in lift)
2. जब लिफ्ट नीचे की ओर जाती है तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड का भार घटा हुआ प्रतीत होता है।
3. जब लिफ्ट एक समान वेग से ऊपर या नीचे गति करती है तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड के भार में कोई परिवर्तन नहीं प्रतीत होता है।
4. यदि नीचे उतरते समय लिफ्ट की डोरी टूट जाए तो वह मुक्त पिण्ड की भांति नीचे गिरती है। ऐसी स्थिति में लिफ्ट में स्थित पिण्ड का भार शून्य होता है। यही भारहीनता की स्थिति है।
5. यदि लिफ्ट के नीचे उतरते समय लिफ्ट का त्वरण गुरुत्वीय त्वरण से अधिक हो तो लिफ्ट में स्थित पिण्ड उसकी फर्श से उठकर उसकी छत से जा लगेगा।
- ग्रहों की गति से संबंधित केप्लर का नियम
1. प्रत्येक ग्रह सूर्य के चारों ओर दीर्घवृत्ताकार ( elliptical) कक्षा में परिक्रमा करता है तथा सूर्य ग्रह की कक्षा के एक फोकस बिन्दु पर स्थित होता है।
2. प्रत्येक ग्रह का क्षेत्रीय वेग (areal velocity) नियत रहता है। इसका प्रभाव यह होता है कि जब ग्रह सूर्य के निकट होता है, तो उसका वेग बढ़ जाता है और जब वह दूर होता है, तो उसका वेग कम हो जाता है।
3. सूर्य के चारों ओर ग्रह एक चक्कर जितने समय में लगाता है, उसे उसका परिक्रमण काल (T) कहते हैं, परिक्रमण काल का वर्ग ( T2 ) ग्रह की सूर्य से औसत दूरी (r) के धन (r3) के अनुक्रमानुपाती होता है, अर्थात् {T2∝r3 अर्थात् सूर्य से अधिक दूर के ग्रहों का परिक्रमण काल भी अधिक होता है।
उदाहरण – सूर्य के निकटतम ग्रह बुध का परिक्रमण काल 88 दिन है, जबकि दूरस्थ ग्रह वरुण (Neptune) का परिक्रमण काल 165 वर्ष है।
नोट: आईएयू (I.A.U.) ने यम (Pluto) को ग्रह की श्रेणी से निकाल दिया है इसीलिए अब दूरस्थ ग्रह वरुण (Neptune ) है|
उपग्रह ( Satellite) : किसी ग्रह के चारों ओर परिक्रमा करने वाले पिंड को उस ग्रह का उपग्रह कहते हैं। जैसे― चन्द्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है।
उपग्रह का कक्षीय चाल (Orbital Speed of a Satellite)
(i) उपग्रह की कक्षीय चाल उसकी पृथ्वी तल से ऊँचाई पर निर्भर करती है। उपग्रह पृथ्वी तल से जितना अधिक दूर होगा, उतनी ही उसकी चाल कम होगी।
(ii) उपग्रह की कक्षीय चाल उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करती है। एक ही त्रिज्या के कक्षा में भिन्न-भिन्न द्रव्यमानों के उपग्रहों की चाल समान होगी।
नोट : पृथ्वी तल के अति निकट चक्कर लगाने वाले उपग्रह की कक्षीय चाल लगभग 8 किमी0/सेकेण्ड होता है।
उपग्रह का परिक्रमण काल (Period of Revolution of a Satellite) : उपग्रह अपनी कक्षा में पृथ्वी का एक चक्कर जितने समय में लगाता है, उसे उसका परिक्रमण काल कहते हैं ।
अतः परिक्रमण काल = कक्षा की परिधि / कक्षीय चाल
(i) उपग्रह का परिक्रमण काल भी केवल उसकी पृथ्वी तल से ऊँचाई पर निर्भर करता है और उपग्रह जितना अधिक दूर होता है उतना ही अधिक उसका परिक्रमण काल होता है ।
(ii) उपग्रह का परिक्रमण काल उसके द्रव्यमान पर निर्भर नहीं करता है ।
नोट : पृथ्वी के अति निकट चक्कर लगाने वाले उपग्रह का परिक्रमण काल 1 घंटा 24 मिनट होता है ।
भू-स्थायी उपग्रह (Geo-Stationary Satellite): ऐसा उपग्रह जो पृथ्वी के अक्ष के लम्बवत् तल में पश्चिम से पूरब की ओर पृथ्वी की परिक्रमा करता है तथा जिसका परिक्रमण काल पृथ्वी के परिक्रमण काल (24 घंटे) के बराबर होता है, भू-स्थायी उपग्रह कहलाता है । यह उपग्रह पृथ्वी तल से लगभग 36,000 किमी० की ऊँचाई पर रहकर पृथ्वी का परिक्रमण करता है । भू-तुल्यकालिक (Geosynchronous) कक्षा में संचार उपग्रह स्थापित करने की संभावना सबसे पहले आर्थर सी. क्लार्क ने व्यक्त की थी।
पलायन वेग (Escape Velocity) : पलायन वेग वह न्यूनतम वेग है जिससे किसी पिंड को पृथ्वी की सतह से ऊपर की ओर फेंके जाने पर वह गुरुत्वीय क्षेत्र को पार कर जाता है, पृथ्वी पर वापस नहीं आता । पृथ्वी के लिए पलायन वेग का मान 11.2km / s है अर्थात् पृथ्वी - तल से किसी वस्तु को 11.2 km / s या इससे अधिक वेग से ऊपर किसी भी दिशा में फेंक दिया जाए तो वस्तु फिर पृथ्वी तल पर वापस नहीं आयेगी।
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